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________________ जयमाला Jayamālā (सोरठा) पूज्य अकम्पन आदि, सात शतक साधक-सुधी | यह उनकी जयमाल, वे मुझको निज-भक्ति दें ||१|| (sõrathā) pūjya akampana ādi, sāta sataka sādhaka-sudhī| Yaha unakī jayamāla, vē mujhako nija-bhakti dēm ||1|| (पद्धरि छन्द) वे जीवदया पाले महान्, वे पूर्ण-अहिंसक ज्ञानवान | उनके न रोष उनके न राग, वे करें साधना मोह-त्याग ||२|| अप्रिय असत्य बोलें न बैन, मन-वचन-काय में भेद है न | वे महासत्य-धारक ललाम, है उनके चरणों में प्रणाम ||३|| वे लें न कभी मृण-जल अदत्त, उनके न धनादिक में ममत्त | वे व्रत-अचौर्य दृढ़ धरें सार, है उनको सादर नमस्कार ||४|| वे करें विषय की नहीं चाह, न उनके हृदय में काम-दाह | वे शील सदा पाले महान्, सब मग्न रहें निज-आत्मध्यान ||५|| सब छोड़ वसन-भूषण-निवास, माया-ममता-स्नेह आस | वे धरें दिगम्बर-वेष शांत, होते न कभी विचलित न भ्रांत ||६|| नित रहें साधना में सुलीन, वे सहें परीषह नित-नवीन | वे करें तत्त्व पर नित-विचार. है उनको सादर नमस्कार ||७|| पंचेद्रिय-दमन करें महान्, वे सतत बढ़ावें आत्मज्ञान | संसार-देह सब भोग त्याग, वे शिव-पथ साधे सतत जाग ||८|| 'कुमरेश' साधु वे हैं महान्, उनसे पाये जग नित्य-त्राण | मैं करूँ वंदना बार-बार, वे करें भवार्णव मुझे पार ||९|| (Pad'dhari chanda) ve jivadaya palem mahan, ve purna-ahinsaka jnanavana | Unakē na rosa unakē na rāga, vē karēm sādhanā mōha-tyāga ||2|| 361
SR No.009252
Book TitleJin Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages771
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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