SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०. फल (छिलके वाले सूखे बादाम, लौंग, छोटी इलायची, कमल गट्टा, पूजा की सुपारी आदि प्रासुक जल से धो लें) ११. अर्घ्य (ऊपरोक्त आठों द्रव्यों के कुछ अंशों का मिश्रण) १२.जाप्य-माला | १३.एक छन्ना शुद्धता बनाये रखने के लिए | १४.पूजा पुस्तक, स्वाध्याय ग्रन्थ आदि: जैन पूजा-साहित्य-ग्रन्थ भण्डार के दर्शन कर, कायोत्सर्ग-पूर्वक याचना कर इन्हें उठाएं व विनय पूर्वक पूजा-स्थल पर निर्जन्तु व सूखा स्थान देख कर रखें | द्रव्य-थाल सजाने की विधि दोनों कलशों में प्रासुक जल भरें, उन पर चन्दन-लेप से स्वास्तिक मांड कर चम्मच डाल कर द्रव्य-थाली में रखें | दाहिनी ओर रखे कलश में चन्दन लेप की कुछ बूंदें घोल दें, इनके दाहिनी ओर क्रमशः अक्षत पुंज, पुष्प पुंज, नैवेद्य, दीप, धूप एवं फल रखें और बीच में अर्घ्य-पुंज सजाएं| पूजा-थाल सजाने की विधि शुद्ध कपड़े से पोंछकर साफ की हुई थाली में बीचोंबीच चन्दन लेप से अनामिका उँगली से या लौंग से सिद्ध-शिला समेत स्वास्तिक (चित्रानुसार) मांडें| पोंछे हुए ठोने (आसन/ आसिका) में आठ पंखुड़ी वाला कमल पुष्प मांड कर स्वास्तिक के ऊपर वाले खाली स्थान में रखें, उसी के बराबर जल व चन्दन चढाने के लिए मंगल-चिह्न-रूप पुष्प मांड कर कटोरा रखें (कहीं कहीं ठोने व कटोरे में भी स्वास्तिक अथवा ॐ/ओं/श्री मांडने का चलन है)। (जिनेन्द्र-प्रभु की पूजन ‘कमलासन' पर विराजमान कर होती है (सिंहासन पर नहीं), ठोने पर कमल इसी भाव से मांडते हैं, तथा स्वास्तिक भगवान के निर्वाण-स्थान पर इंद्र द्वारा बनाया गया शाश्वत चिह्न है| हमारी द्रव्य व भाव पूजाओं की समस्त सामग्री इसी चिह्न पर चढाने के भाव करें)। जहाँ धूप खेने की परंपरा है, धूपायन (धुपाड़ा, वह पात्र जिसमें लकड़ी के अंगारे हों) भी रखते हैं| आज के समय में अग्नि के खतरों व प्रदूषण के विचार से, अग्नि में खेने के विकल्प के रूप में धूप को पूजन-थाली में या अलग पात्र में चढ़ाया जा रहा है| अग्निकायिक जीवों की रक्षा तो है ही, धूप की शुद्धता में संदेह के समाधान रूप में नारियल की छीलन, सफेदा के सूखे वृक्ष की छीलन, अथवा लौंग के चूरे का प्रयोग होता देखा जा रहा है| बाज़ार में मिलने वाली धूप का प्रयोग न करें| 35
SR No.009252
Book TitleJin Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages771
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy