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________________ पूरण करो ये आस जन्म है मैंने दियाII माता की बात मान ली औ ब्याह किया थाI पर चार रानियों ने भी मन न मोह लिया थाII संसार के सुखों की तरफ खूब रिझायाI इक चोर ने भी आके उन्हें सही बताया || संसार है असार जीव चले अकेला I परिवार माता पिता भाई जगत का मेलाII वैराग्य ज्योति जगी न मंद पड़ी हैI जग छोड़ दिया सामने दीक्षा की घड़ी है II गुरु चरणों में जा करके मुनि दीक्षा को पाया I चारों ही ज्ञान ने उन्हीं में वास बनाया II गौतम सुधर्म बाद केवल ज्ञान हो गया I दिव्य आत्मा से जग ये जगमगा गयाII ओंकार ध्वनि जो खिरी सब धन्य हो गये I आचार्य मुनि भक्त शरण में भी आ गयेII तत्त्व द्रव्य चेतना का उन्हें ज्ञान कराया I संसार को छोड़ो सभी को ये सत्य बताया || चारों ही रानियां औ मां भी चरण में आई I जब ज्ञान हुआ आ के वहां दीक्षा को पाईII वे घोर-घोर तप करें है कर्म नशाना I सभी करम नाश कर मुक्ति को पाना || फिर जम्बू स्वामी जम्बू वन में ध्यान लगाए I आठों करम कर नाश दिव्य मुक्ति को पाए II था पांचवां वो काल कोई रोक न पायाI पुरुषार्थ करें ध्यान करें ज्ञान ये पायाII हमको भी सच्चे ज्ञान का वरदान दीजिए I जम्बू स्वामी! हो कल्याण ज्ञान दीजिए II 'स्वस्ति' ने करी भक्ति प्रभो ध्यान दीजिए I भक्तों को लेके शरण में कल्याण कीजिए || (Śēracāla) 306
SR No.009252
Book TitleJin Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages771
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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