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________________ Om hrī kārtikakrsna-amāvasyām mākşamangala-manditāya śrīmahāvīrajinēndrāya arghyam nirvapāmīti svāhā (5|| जयमाला Jayamālā (दोहा) मंगलमय तुम हो सदा, श्रीसन्मति सुखदाय | चाँदनपुर महावीर की, कहूँ आरती गाय || (Dōhā) Mangalamaya tuma ho sadā, śrīsanmati sukhadāya Cāňdanapura mahāvīra kī, kahūń āratī gāya || (पद्धरि छन्द) जय जय चाँदनपुर महावीर, तुम भक्तजनों की हरत पीर | जड़ चेतन जग को लखत आप, दई द्वादशांग वानी अलाप ||१|| अब पंचमकाल मँझार आय, चाँदनपुर अतिशय दई दिखाय | टीले के अंदर बैठि वीर, नित झरा गाय का स्वयं क्षीर ||२|| ग्वाले को फिर आगाह कीन, जब दरसन अपना तुमने दीन | मूरति देखी अति ही अनूप, है नग्न दिगंबर शांति रूप ||३|| तहाँ श्रावकजन बहु गये आय, किये दर्शन मन वचन काय | है चिह्न शेर का ठीक जान, निश्चय है ये श्रीवर्द्धमान ||४|| सब देशन के श्रावक जु आय, जिनभवन अनूपम दियो बनाय | फिर शुद्ध दई वेदी कराय, तुरतहिं रथ फिर लियो सजाय ||५|| ये देख ग्वाल मन में अधीर, मम गृह को त्यागो नाहिं वीर | तेरे दर्शन बिन तनँ प्राण, सुन टेर मेरी किरपा निधान ||६|| कीने रथ में प्रभु विराजमान, रथ हुआ अचल गिरि के समान | तब तरह तरह के किये जोर. बहतक रथ गाडी दिये तोड ||७|| निशिमाँहि स्वप्न सचिवहिं दिखात, रथ चलै ग्वाल का लगत हाथ | भोरहिं झट चरण दियो बनाय, संतोष दियो ग्वालहिं कराय ||८|| करि जय! जय! प्रभु से करी टेर, रथ चल्यो फेर लागी न देर | बह निरत करत बाजे बजाई, स्थापन कीने तहँ भवन जाइ ||९|| 290
SR No.009252
Book TitleJin Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages771
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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