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________________ (७) श्री नयनागिरि (रेशंदीगिरि) सिद्धक्षेत्र (म.प्र.) शुचि अमृत-आदि समग्र, सजि वसु-द्रव्य प्रिया | धारूं त्रिजगत-पति-अग्र, धर वर-भक्त हिया || ओं ह्रीं श्री नयनागिरि-सिद्धक्षेत्राय अनर्य-पद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । (८) श्री द्रोणगिरि सिद्धक्षेत्र (म.प्र.) जल सु चंदन अक्षत लीजिये, पुष्प धर नैवेद्य गनीजिये | दीप धूप सुफल बहु साजहीं, जिन चढ़ाय सुपातक भाजहीं || ओं ह्रीं श्री द्रोणगिरि- सिद्धक्षेत्राय अनर्य-पद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा | (9) सिद्धवरकूट सिद्धक्षेत्र (म.प्र.) जल चंदन अक्षत लेय, सुमन महा प्यारी | चरु दीप धूप फल सोय, अरघ करूं भारी || द्वय चक्री दस काम कुमार, भव तर मोक्ष गये | ता तें पूजू पद-सार, मन में हरष ठये || ओं ह्रीं श्री सिद्धवरकूट-सिद्धक्षेत्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । 83
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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