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________________ श्री मल्लिनाथ जिन जल फल अरघ मिलाय गाय गुन, पूजौं भगति बढ़ाई। शिवपदराज हेत हे श्रीधर, शरन गहो मैं आई || राग-दोष-मद-मोह हरनको, तुम ही हो वरवीरा । यातैं शरन गही जगपतिजी, वेग हरो भवपीरा ।। ॥ ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अनघ्यपद प्राप्तये अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। श्री मुनिसुव्रतनाथ जिन जलगंध आदि मिलाय आठों दरब अरघ सजों वरों । पूजौं चरन रज भगतिजुत, जातें जगत-सागर तरों।। शिव-साथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनि गुनमाल हैं। तसु चरन आनन्दभरन तारन - तरन विरद विशाल हैं ॥॥॥ ऊँ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतनाथजिनेन्द्राय अनघ्यपद प्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। श्री नमिनाथ जिन जल-फलादि मिलाय मनोहरं, अरघ धरत ही भवभय-हरं। जजतु हौं नमिके गुण गायके, जुग - पदांबुज प्रीति लगायके।। ॐ ह्रीं श्रीनमिनाथजिनेन्द्राय अनघ्यपद - प्राप्तये अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 34
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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