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________________ श्री सुपार्नाथ जिनेन्द्र आठों दरब साजि गुनगाय, नाचत राचत भगति बढ़ाय || दयानिधि हो, जय जगबंधु दयानिधि हो || तुम पद पूजूं मन-वच-काय, देव सुपारस शिवपुर राय | दयानिधि हो, जय जगबंधु दयानिधि हो || ओं ह्रीं श्री सुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । श्री चंद्रप्रभ-जिनेन्द्र सजि आठों द्रव्य पुनीत, आठों अंग नमूं | पूजूं अष्टम जिन मीत, अष्टम अवनि गनूं || श्री चंद्रनाथ दुतिचंद, चरनन चंद लसें | मन-वच-तन जजत अमंद, आतम जोति जसे || ओं ह्रीं श्री चंद्रप्रभस्वामिने अनर्घ्यपद -प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । श्री पुष्पदंत-जिनेन्द्र जल फल सकल मिलाय मनोहर, मन-वच-तन हुलसाय || तुम-पद पूजूं प्रीति लायके, जय जय त्रिभुवनराय || मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदंत जिनराय, मेरी अरज सुनीजे || ओं ह्रीं श्री पुष्पदन्त-जिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । 19
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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