SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सरस्वती पूजा नयनन सुखकारी, मृदुगुनधारी, उज्ज्वलभारी, मोलधरै। शुभगन्धसम्हारा, वसननिहारा, तुम अन धारा ज्ञान करै।।तीर्थः ऊँ ह्रीं श्री जिनमुखोद्भभवसरस्वतीदेव्यै अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा। श्री गौतम गणधर पानीय आदि वसु द्रव्य सुगन्धयुक्त, लाया प्रशांत मन से निज रूप पाने। संसार के अखिल त्रास निवारने को योगीन्द्र गौतम –पदाम्बुज –में चढाता। ऊँ ह्रीं कार्ति कृष्णामावस्यायां कैवल्यलक्ष्मी प्राप्तये श्री गौतम गणधराय अर्ध्यम निर्वपामीति स्वाहा। दशलक्षण-धर्म आठों दरब संवार, ‘द्यानत' अधिक उछाह सों | भव-आताप निवार, दस-लक्षण पूजू सदा || ओं ह्रीं उत्तमक्षमादि-दशलक्षणधर्माय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । सोलहकारण-भावना जल-फल आठों दरब चढ़ाय,' द्यानत' वरत करौं मन-लाय | परमगुरु हो जय-जय नाथ परमगुरु हो || दरशविशुद्धि-भावना भाय, सोलह तीर्थंकर-पद-दाय | परमगुरु हो, जय-जय नाथ परमगुरु हो || ओं ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादिषोडशकारणेभ्य: अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। 102
SR No.009251
Book TitleJin Samasta Ardhyavali Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy