SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। जन्म मरण की वेदना से रोता हूँ। कर्म बंध के भार को मैं ढोता हूँ।। मल्लिनाथ जिनवर के दर्शन मैं करूँ। पूजन करने अक्षय जिनपद को हरूँ।।3।। ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा। पंचेन्द्रिय की अभिलाषाएँ भटकाती। ब्रह्म रूप में लीन नहीं होने देती।। मल्लिनाथ जिनवर के दर्शन मैं करूँ। पूजन करके परम् ब्रह्म पद में रम।।4।। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। पूर्ण शुद्ध चेतन चिन्मय चिद्रप हैं। फिर भी जड़ संबंध किया विद्रूप हूँ।। मल्लिनाथ जिनवर के दर्शन मैं करूँ। पूजन करके समता रस का पान करूँ।।5।। ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीप भू पर नभ में सूरज तारे हैं। अंधकार हरने बेवस बेचारे हैं।। मल्लिनाथ जिनवर के दर्शन मैं करूँ। पूजन करके ज्ञान दीप उर में ध रूँ।।6।। ऊँ ह्रीं श्रीमल्लिनिाथजिनेन्द्राय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 148
SR No.009250
Book TitleJin Pujan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy