SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्षपक श्रेणी आरूढ़ हुये तब, केवलज्ञान प्रकाश हुआ। विचरण करके देश-देश में, मोक्षमार्ग उपदेश दिया।। राज्य दशा में चक्ररत्न के, भय से नृप ने नमन किया। प्रगट हुई चिद्रूप दशा तो, श्रद्धा से तव शरण लिया।।5।। श्रीसम्मेद शिखर पर स्वामी, शुक्लध्यान आसीन हुये। कूट कुंदप्रभ पुनीत धरा से, सिद्धक्षेत्र में पहुँच गये।। अहो भाग्य है मेरा प्रभुवर, दर्श करूँ दो नयनों से। शांति जिनेश्वर का गुण गाऊँ, तन से मन से वचनों से।।6।। शांतिनाथ जगदीश्वर स्वामी, मुझको भी ऐसा वर दो। अनुकूल प्रतिकूल योग में, समता हो ऐसा कर दो।। प्रभु आपके चरण पखारूँ, मिथ्या तिमिर विनाश करूँ। तीर्थंकर पद वंदन करके, पंच पाप मल नाश करूँ।।7। शांतिनाथ प्रभु का दर्शन कर, सम्यग्दर्शन प्राप्त करूँ। शांति विधाता का सुमिरण कर, सम्यग्ज्ञान प्रकाश वरूँ।। शांतिनाथ मरत अर्चन कर, सम्यग्चारित हृदय धरूँ। विघ्न विनाशक चरण चित्त धर, बारंबार प्रणाम करूँ।।8।। श्री जिनवर का सुयश गान कर, शाश्वत मुक्तिधाम वरूँ। शांति जिनेश मोक्ष पद दाता, परम शांत रस पान करूँ।। करुणासागर चरणांबुज का, दर्शन कर भव भार हरूँ। प्रभु आपके पथ पर चलकर, भव समुद्र को पार करूँ।।9।। दोहा शांति प्रभु के चरण को, चित् सिंहासन धार। __ श्रद्धा द्वीप उजाल कर, ध्याऊँ बारंबार।।!!10 ॐ हीं श्रीशांतिनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। 132
SR No.009250
Book TitleJin Pujan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy