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________________ जयमाला दोहा अनंत गुण गण युक्त हे, अनंत जिन भगवंत। गुणमाला अर्पण करूँ, पा जाऊँ शिवपंथ।1।। जय-जय चौदहवें तीर्थंकर, अनंतनाथ प्रभु दया निधान। दे उपदेश भव्य जीवों का, करते आप सदा कल्याण।। दीक्षा धर सर्वज्ञ हुए जब, जन-जन का उद्धार किया। रत्नत्रय मय मोक्षमार्ग है, दिव्यध्वनि का सार दिया तेरह विध चारित्र बताया, दिव्यध्वनि में ज्ञान कराया।।2।। जीव समास चतुर्दश चौदह, मुख्य मार्गणा बतलाई। गुणास्थान जीवों के चौदह, परिभाषा भी बतलाई।। तत्त्वों का श्रद्धान नहीं वह, मिथ्यातम कहलाता है। उपशम सवमकि से गिरकर ही, सासादन में आता है।।3।। सम्यक् मिथ्या दही गुड़ मिश्रित, भाव मिश्र गुण में आते। चौथे अविरत सम्यग्दृष्टि, स्व-पर तत्त्व श्रद्धा लाते।। त्रस थावर में विरताविरति, पंचम देश विरत कहते। सायम सकल प्रगट हो जाता, उसे प्रमत्तविरत करते।।4।। जहाँ संजवलन मंद उदय हो, अप्रमत्तविरति होते। अष्टम गुण से ही उपशम औ, क्षपक श्रेणी भी चढ़ जाते।। ___ कभी पूर्व में प्राप्त हुए ना, वो अपूर्व परिणाम धरे।। नवमाँ है अनिवृत्तिकरण समकालीन भाव अभेद धरे।।5।। दशम सूक्ष्म सांपराय गुण है, सूक्ष्म लोभ का उदय रहे। पूर्ण रूप से दबे मोह तो, ग्यारहवाँ गुणथान कहे।। सकल मोह का क्षय हो जता, क्षीण मोह द्वादश प्यारा। चार घातिया नाश हुए तो, सयोग केवली गुण न्यारा।।6।। 119
SR No.009250
Book TitleJin Pujan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages188
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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