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पुर्तगाल गोआ के ईसाई धर्म - प्रचारक, जिन्होंने मुगल दरबार में भेंट की तथा यूरोपीय साहसियों और 17वीं शताब्दी से आगे के यात्री जैसे टैरी बर्नियर, टेबर्नियर, मेनुसी, पीटर मुण्डे इत्यादि ने जैसा था और जैसा दिखा, वैसा अपना अलग-अलग भारत का वृत्तान्त छोड़ दिया । इनमें से मूलभूत यूनानी अभिलेख तो बहुत पहले ही खो गये। उससे काफी शताब्दियों के बाद लिखी गईं यूनानी तथा रोम की ऐतिहासिक कृतियों में उनका आंशिक मात्र ही सङ्कलन हो सका। लेकिन वे निःसंकोच उपयोग में आए तथा अक्सर उद्धृत हुए । अन्य प्रारम्भिक वृत्तान्तों में से अधिकांश पूर्णरूप से अपने मूलस्वरूप में हमारे पास नहीं आए। चीनी यात्रियों का दृष्टिकोण पूर्णरूप से बौद्धधर्म से सम्बन्धित था और जो उन्होंने देखा और वर्णित किया, वह उनके स्वयं के धर्म से अधिक निकट था । अधिकांश मुसलिम लेखक और इतिहासकार पक्षपाती थे और उनका दृष्टिकोण मुख्यता से मुसलमानी
था।
जैसा प्रो. रावेलसन कहते हैं कि 17वीं - 18वीं शताब्दी के यूरोपीय यात्रियों ने भी हिन्दुओं के बारे में प्रायः मुसलमानी दृष्टिकोण अपना लिया। ये सभी विदेशी लेखक व्यावहारिक रूप से अजनबी क्षेत्र में अजनबी होने के अलावा देश की किसी भी भाषा को कभी भी नहीं जानते थे और उनमें से अधिकतर औसत बुद्धिवाले साधारण लोग थे। वे देश के वास्तविक जीवन से कभी परिचित नहीं हुए । उनके पास अधिकांश बिन्दुओं पर भरोसेमन्द और पर्याप्त जानकारी प्राप्त करने के लिए न के बराबर अवसर और साधन थे । तथा जो कुछ भी मामूली, अस्पष्ट और प्रायः त्रुटिपूर्ण जानकारियों को सङ्कलित करने में वे सफल हुए, वे सब किंवदन्ती, नाइयों की दुकान और बाजार की गप्पों से प्राप्त हुई, जिसे वे अपनी स्वयं की भ्रामक और कई बार पूर्वाग्रहपूर्ण कल्पनाओं से भर देते थे । साम्प्रदायिक भिन्नता
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