SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 65
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिव्य मनोहर उच्च जिनालय समवशरण सह शोभित हैं। पंच जिनालय परमेश्वर के, भव्यों के मन मोहित हैं ॥३४।। बनी धर्मशाला अति सुन्दर, मानस्तम्भ सुहाता है। आश्रम गुरुकुल विद्यालय यश, गौरव क्षेत्र बढ़ाता है ॥३५॥ यह स्याद्वाद का मुख्यालय, यह धर्म-ध्वजा फहराता है। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरण सह, मुक्ती-पथ दरशाता है ॥३६।। तीन लोक तीरथ की रचना, ज्ञान ध्यान अनुभूति करो। गुरुकुल साँवलिया बाबाजी, जो माँगो दें अर्ज करो ॥३७।। अगहन शुक्ला पंचमि गुरुदिन, विद्याभूषण शरण लही। स्याद्वाद गुरुकुल स्थापन, पच्चीसों चौबीस भई ॥३८।। शिक्षा मंदिर औषधि शाला, बने साधना केन्द्र यहीं। दुख दारिद्र मिटे भक्तों का, अनशरणों की शरण सही ।।३९।। स्वारथ जग नित-प्रति धोखे खा, सन्मति शरणा आये हैं। चूक माफ मनवांछित फल दो, स्याद्वाद गुण गाये हैं ॥४०॥ (दोहा) हे पारस जग जीव हों, सुख सम्पति भरपूर । साम्यभाव ‘सन्मति' रहे, भव दुख हो चकचूर । 65
SR No.009247
Book TitleJain Chalisa Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy