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________________ पात्रदान से हर्षित होमकर, पंचाश्चर्य करे सुर आकर । प्रभुवर लोट गए उपवन को, तत्पर हुए कर्म- छेदन को ।। लगी समाधि नाग वृक्ष तल, केवलज्ञान उपाया निर्मल ।। इन्द्राज्ञा से समोश्रण की, धनपति ने आकर रचना की। दिव्य देशना होती प्रभु की, ज्ञान पिपासा मिटी जगत की। अनुप्रेक्षा द्वादश समझाई, धर्म स्वरूप विचारो भाई । शुक्ल ध्यान की महिमा गाई, शुक्ल ध्यान से हों शिवराई । चारो भेद सहित धारो मन, मोक्षमहल में पहुँचो तत्क्षण ।। मोक्ष मार्ग दर्शाया प्रभु ने, हर्षित हुए सकल जन मन में । इन्द्र करे प्रार्थना जोड़ कर, सुखद विहार हुआ श्री जिनवर ।। गए अन्त में शिखर सम्मेद, ध्यान में लीन हुए निरखेद ।। शुक्ल ध्यान से किया कर्मक्षय, सन्ध्या समय पाया पद आक्षय ।। अश्विन अष्टमी शुकल महान, मोक्ष कल्याणक करें सुर आन ।। सुप्रभ कूट की करते पूजा, सुविधि नाथ नाम है दूजा ॥ मगरमच्छ है लक्षण प्रभु का, मंगलमय जीवन था उनका ।। शिखर सम्मेद में भारी अतिशय, प्रभु प्रतिमा है चमत्कारमय । कलियुग में भी आते देव, प्रतिदिन नृत्य करें स्वयमेव । धुंघरू की झंकार गूंजती, सब के मन को मोहित करती ॥ ध्वनि सुनी हमने कानो से, पूजा की बहु उपमानो से ॥ हमको है ये दृड श्रद्धान, भक्ति से पायें शिवथान ।। भक्ति में शक्ति है न्यारी, राह दिखायें करूणाधारी ।। पुष्पदन्त गुणगान से, निश्चित हो कल्याण ॥ हम सब अनुक्रम से मिले, अन्तिम पद निर्वाण ॥ 29
SR No.009247
Book TitleJain Chalisa Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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