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________________ भद्दिलपुर तीर्थ की आरती शीतलप्रभु जन्मभूमी महान है, नाम भद्रपुरि जग में मान्य है। आरति मोह तिमिर को हरती, जिनशासन का धाम है। शीतल । टेक.। इसी धरा पर शीतल प्रभु जी, मात सुनन्दा से जन्मे । राजा दृढ़रथ धन्य हुए, इन्द्रादिक उत्सव खूब करें ।। सभी ग्रन्थ करें इसका बखान है, नाम भद्रपुरि जग में मान्य है। आरती.... ....11311 ब्याह किया और राज्य किया, फिर दीक्षा ले तप हेतु चले । केवलज्ञान हुआ तब समवसरण की रचना अधर बने।। दिव्यध्वनि से हो जन कल्याण है, नाम भद्रपुरि जग में मान्य है। आरती..............................॥२॥ चार-चार कल्याणक से, पावन नगरी मानी जाती। इसका वन्दन करने से, आत्मा भी तीरथ बन जाती। जिनधर्म की संस्कृति का प्राण है, नाम भद्रपुरि जग आरती.................................॥३॥ मान्य है। जन्मभूमि की आरति से, अब जीवन सफल बनाना है। इसका वन्दन करके हमको, वंद्य परम पद पाना है। "चंदनामती” यह तीर्थ महान है, नाम भद्रपुरि जग में मान्य है। आरती. 11811 88
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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