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________________ श्री पद्मप्रभ भगवान की आरती पद्मप्रभू भगवान हैं, त्रिभुवन पूज्य महान हैं, भक्ति भाव से आरति करके, मिटे तिमिर अज्ञान है । । टेक.।। मात सुसीमा धन्य हो गयी, जन्म लिया जब नगरी में। जन्म....... स्वर्ग से इन्द्र-इन्द्राणी आकर, मेरू पर अभिषेक करें ।। मेरू.. कौशाम्बी शुभ धाम है, जहाँ जन्में श्री भगवान हैं। भक्ति भाव से आरति करें, मिटे तिमिर अज्ञान है ॥ १ ॥ कार्तिक वदि तेरस शुभ तिथि थी, वैभव तृणवत छोड़ दिया। वैभव.... मुक्तिमा की प्राप्ती हेतू, ले दीक्षा शुभ ध्यान किया। दीक्षा.. वह भू परम महान है, जहां दीक्षा लें भगवान हैं। भक्ति भाव से आरति करें, मिटे तिमिर अज्ञान है || २ || चैत्र शुक्ल पूनो तिथि तेरी, केवलज्ञान कल्याण तिथी। केवल...... मोहिनि कर्म का नाश किया, मिल गई प्रभो अर्हत् पदवी || मिल... समवसरण सुखखान है, दिव्यध्वनि खिरी महान है। भक्ति भाव से आरति करें, मिटे तिमिर अज्ञान है || ३ || फाल्गुन कृष्ण चतुर्थी तिथि में, प्रभु कहलाए मुक्तिपती । प्रभु... लोक शिखर पर जाकर तिष्ठे, सदा जहां शाश्वत सिद्धी ।। सदा..... शिखर सम्मेद महान है, मुक्ति गए भगवान हैं। भक्ति भाव से आरति करें, मिटे तिमिर अज्ञान है ॥४॥ सुर नर वंदित कल्पवृक्ष प्रभु, तुम पद्मा के आलय हो । कहे ‘चंदनामती' पद्मप्रभु, भविजन सर्व 'सुखाल हो करें सभी गुणगान है, मिले मुक्ति का दान है। भक्ति भाव से आरति करें, मिटे तिमिर अज्ञान है ॥ ५ ॥ 21
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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