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________________ श्री आदिनाथ भगवान की आरती (3) जगमग जगमग आरती कीजै, आदिश्वर भगवान की | प्रथम देव अवतारी प्यारे, तीर्थंकर गुणवान की | जगमग अवधपुरी में जन्मे स्वामी, राजकुंवर वो प्यारे थे, मरु माता बलिहार हुई, जगती के तुम उजियारे थे, द्वार द्वार बजी बधाई, जय हो दयानिधान की || जगमग बड़े हुए तुम राजा बन गये, अवधपुरी हरषाई थी, 2 भरत - बाहुबली सुत मतवारे मंगल बेला आई ; थी, 2 करें सभी मिल जय जयकारे, भारत पूत महान की | जगमग नश्वरता को देख प्रभुजी, तुमने दीक्षा धारी थी, 2 देख तपस्या नाथ तुम्हारी, यह धरती बलिहारी थी | प्रथम देव तीर्थंकर की जय, महाबली बलवान की || जगमग बारापाटी में तुम प्रकटे, चादंखेड़ी मन भाई है, जगह-जगह के आवे यात्री, चरणन शीश झुकाई है | फैल रही जगती में "नमजी" महिमा उसके ध्यान की || जगमग (0 16
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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