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________________ तेरहद्वीप रचना की आरती आरति करो रे, तेरहद्वीपों के जिनबिम्बों की आरति करो रे।। टेक.।। तीन लोक में मध्यलोक के अंदर द्वीप असंख्य कहे। उनमें से तेरहद्वीपों में अकृत्रिम जिनबिंब रहें।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, चउ शत अट्ठावन जिनमंदिर की आरति करो रे॥१॥ इनमें ढाई द्वीपों तक ही मनुज क्षेत्र कहलाता है। पंच भरत पंचैरावत क्षेत्रों का दृश्य सुहाता है। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्रीपंचमेरु के जिनबिम्बों की आरति करो रे।।२।। पंचम क्षीर समुद्र के जल से प्रभु का जन्म न्हवन होता। अष्टम द्वीप नंदीश्वर में इन्द्रों द्वारा अर्चन होता।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, कुण्डलवर और रुचकवर द्वीप की आरति करो रे॥३॥ इन सबका वर्णन तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ में मिलता है। दर्शन कर साक्षात् पुण्य का कमल हृदय में खिलता है।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, ढाई द्वीपों के समवसरण की आरति करो रे॥४॥ गणिनीप्रमुख ज्ञानमती माताजी ने हमें बताया है। हस्तिनापुर में यह रचना जिनमंदिर में बनवाया है।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, “चन्दनामती'' इस अद्भुत कृति की आरति करो रे।।५।। 139
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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