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________________ श्री ज्ञानमती माताजी की आरती (2) आरति करो रे, श्री गणिनी ज्ञानमती माताजी की आरति करो रे ।।टेक.।। जिनके दर्शन वंदन से, अज्ञान तिमिर नश जाता है। जिनकी दिव्य देशना से, शुभ ज्ञान हृदय वश जाता है।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती जी की आरति करो रे॥१॥ श्री चारित्रचक्रवर्ती, आचार्य शांतिसागर जी थे। उनके प्रथम पट्ट पर श्री आचार्य वीरसागर जी थे।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री वीरसिन्धु की शुभ शिष्या की आरति करो रे।।२।। कितने ग्रन्थों की रचयित्री, युग की पहली बालसती। तेरे चरणों में आ करके, बन गए कितने बालयती।। ___ आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री पारसमणि सम ज्ञानरत्न की आरति करो रे।।३।। पितु श्री छोटेलाल मोहिनी, माँ के घर में जन्म लिया। मोहिनि से बन रत्नमती, तव चरणों में भी नमन किया। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री सरस्वती की प्रतिमूर्ती की आरति करो रे।।४।। जम्बूद्वीप प्रेरणा कर शुभ, ज्ञानज्योति उद्योत किया। सबको ज्ञानज्योति देकर, निज आत्मज्योति प्रद्योत किया।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, श्री ज्ञानज्योति दाता माता की आरति करो रे।।५।। तव चरणों में आए माता, ज्ञानपिपासा पूर्ण करो। कहे “चंदनामती'' ज्ञान की, सरिता मुझमें पूर्ण भरो। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, माँ ज्ञानमती के ज्ञानगुणों की आरति करो रे।।६।। 128
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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