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________________ षट्खण्डागम विधान की आरती आज हम आरति करते हैं-२ षटखण्डागम ग्रंथराज की, आरति करते हैं।।टेक.।। महावीर प्रभू के शासन का ग्रंथ प्रथम कहलाया। उनकी वाणी सुन गौतम-गणधर ने सबको बताया।। आज हम आरति करते हैं-२ वीरप्रभू के परम शिष्य की, आरति करते हैं।।१॥ क्रम परम्परा से यह श्रुत, धरसेनाचार्य ने पाया। निज आयु अल्प समझी तब, दो शिष्यों को बुलवाया।। आज हम आरति करते हैं-२ श्री धरसेनाचार्य प्रवर की, आरति करते हैं।।२।। मुनि नरवाहन व सुबुद्धी, ने गुरु का मन जीता था। देवों ने आ पूजा कर, उन नामकरण भी किया था।। आज हम आरति करते हैं-२ पुष्पदंत अरु भूतबली की, आरति करते हैं।॥३॥ ___ श्री वीरसेन सूरी ने, इस ग्रंथराज के ऊपर। धवला टीका रच करके, उपकार कर दिया जग पर।। __ आज हम आरति करते हैं-२ वीरसेन आचार्य प्रवर की, आरति करते हैं।।४।। गणिनी माँ ज्ञानमती ने, इस ग्रंथ की संस्कृत टीका। लिखकर सिद्धान्तसुचिन्तामणि नाम दिया है उसका।। आज हम आरति करते हैं-२ श्री सिद्धान्तसुचिन्तामणि की, आरति करते हैं।५।। चन्दनामती माताजी, माँ ज्ञानमती की शिष्या। हिन्दी अनुवाद किया है, इस चिन्तामणि टीका का।। आज हम आरति करते हैं-२ सरल-सरस टीका की “सारिका'' आरति करते हैं।।६।। 120
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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