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________________ नवदेवता विधान आरती ॐ जय नवदेव प्रभो, स्वामी जय नवदेव प्रभो। शरण तुम्हारी आए, आरति हेतु प्रभो।। ॐ जय.।। श्री अरिहंत जिनेश्वर, प्रथम देव माने। स्वामी प्रथम....... दूजे देव कहाते, सिद्धशिला स्वामी।। ॐ जय.....॥१॥ चउसंघ नायक सूरी, तृतिय देवता हैं। स्वामी तृतिय...... चौथे देव कहाए, उपाध्याय मुनि हैं।। ॐ जय.......॥२॥ सर्वसाधु हैं पंचम, श्री जिनधर्म छठा। स्वामी श्री जिन........ सप्तम देव जिनागम, जिनवचसार कहा।। ॐ जय....॥३॥ श्री जिनचैत्य हैं अष्टम, जिनप्रतिमा जानो। स्वामी जिन.. श्री जिनचैत्यालय को, देव नवम मानो।।ॐ जय....।।४।। ढाई द्वीप के अन्दर, ये नव देव रहें। स्वामी ये नव....... उनकी भक्ती करके, नर भी देव बनें।।ॐ जय....॥५॥ दो ही देवता आगे, द्वीपों में माने। स्वामी द्वीपों... श्री जिनचैत्य जिनालय, अकृत्रिम माने।।ॐ जय....॥६।। नवदेवों की आरति, करते जो निश दिन। स्वामी करते.... लहें “चंदनामति' वे, सुख साधन प्रतिपल।।ॐ जय....॥७।। 112
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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