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________________ तीस चौबीसी विधान की आरती आरति करो रे, श्री तीस परम चौबीसी जिनकी आरति करो रे || टेक.। जम्बूद्वीप के भरतैरावत की त्रय-त्रय चौबीसी हैं। दुतिय धातकीखंड द्वीप में भी छह-छह चौबीसी हैं।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, द्वीपों के सब तीर्थंकर की आरति करो रे ॥ १ ॥ पुष्करार्ध 'और, पश्चिम में छह-छह चौबीसी । कुल मिलकर ढाई द्वीपों में, तीस परम हैं चौबीसी।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, उन सभी सात सौ बीस प्रभु की आरति करो रे || २ || सभी जिनेश्वर जब जब अपनी माँ के गर्भ में आते हैं। रत्नवृष्टि वहाँ करने हेतू धनकुबेर खुद आते हैं ।। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, त्रैकालिक जिनवर तीर्थंकर की आरति करो रे || ३ || मध्यलोक की दशो ं कर्मभूमी में त्रैकालिक जिनवर। धर्मतीर्थ को चलाते हैं कहलाते तभी ये तीर्थंकर। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, तीर्थंकर एवं तीर्थक्षेत्र की आरति करो रे || ४ || गणिनी ज्ञानमती माताजी की प्रेरणा का प्रतिफल है। अहिच्छत्र में ग्यारह शिखरों वाला सुन्दर मंदिर है। आरति करो, आरति करो, आरति करो रे, “चन्दनामती” उस जिनमंदिर की आरति करो रे ॥५॥ 107
SR No.009245
Book TitleJain Arti Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages165
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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