SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री धर्मनाथ जिन-पूजा (रचयिता - श्री वृन्दावन) (माधवी तथा करीट छन्द) तजिके सरवारथ-सिद्ध विमान, सुभान के आनि आनन्द बढ़ाये। जगमात सुव्रति के नन्दन होय, भवोदधि-डूबत जंतु कढ़ाये।। जिनको गुन-नामहिं माहिं प्रकाश है, दासनिको शिवस्वर्ग मँढाये। तिनके पद पूजन-हेत त्रिबार, सुथापतु हों यह फूल चढ़ाये।। ॐ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम्) ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्) अष्टक मुनि-मन-सम शुचि नीर अति, मलय मेलि भरि झारी। जनम-जरा-मृत-ताप-हरन को, चरचों चरन तुम्हारी।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी। पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी॥ ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।।। केशर चन्दन कदली-नन्दन, दोह निकन्दन लीनो। जल-संग घस लसि शशि-समकर, भव-आताप हरीनो।। परमधरम-शम-रमन धरमजिन, अशरन-शरन निहारी। पूजौं पाय गाय गुन-सुन्दर नाचें दे दे तारी।। ऊँ ह्रीं श्रीधर्मनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।2। 81
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy