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________________ जसरथ राजा के सुत पंच शतक कहे। देश कलिंग मंझार महा मुनि ते भये।। शुक्ल ध्यान तें मुक्ति रमनि सुख पाय जी। तिनि के चरण जजौं मैं मन वच काय से। भवदधि उतरौं पार शरण तुम आय। ऊँ ह्रीं कलिंग देश सेती जसरथ राजा के पांच सौ पुत्र मुनि होय मुक्ति पधारे तिनि को अयं निर्वपामीति स्वाहा।2।। कोटि-शिला एक दक्षिण दिशि में है सही। निहचै सिद्ध क्षेत्र है श्री जिनवर कही।। कोटि मुनीश्वर मुक्ति गये सुख पाय जी। तिनके चरण जजौं मैं मन वच काय जी।। ऊँ ह्रीं दक्षिण दिशि में कोटि-शिला सेती कोडि मुनि मुक्ति पधारे तिनि को अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।221 समवशरण श्री पाश्व जिनेश्वर देव को। करें सुरासुर सेव परम लेव को।। रेसिंदीगिर उत्तम थान सुपाय जी। वरदत्तादि पांच मुनि मुक्ति सुजाय जी।। तिनि के चरण जजौं मैं मन वच काय से। भवदधि उतरौं पार शरण तुम आय के।। ऊँ ह्रीं श्री पार्शवनाथ स्वामी के समवशरण पासि रेसिंदीगिर शिक्षर सेती वरदत्तादि पांच मुनि मुक्ति पधारे तिनि को अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।231 पोदनपुर को राज त्याग मुनि जे भेय। बाहुबलि स्वामी तहां तें सिद्ध भये।। तिनि के चरण जजौं मैं मन वच काय से। भवदधि उतरौं पार शरण तुम आय के।। ॐ ह्रीं श्री पोदनपुर का राज त्याग बाहुबलि जी मुनि को मुक्ति पधारे तिनि को अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।241 श्री तीर्थंकर चतुर्-बीस भगवान हैं। गर्भ जन्म तप ज्ञान भये निरवान हैं।। तिनि के चरण जजौं मैं मन वच काय से। भवदधि उतरौं पार शरण तुम आय। ऊँ ह्रीं पंचकल्याणकधारी चौबीस तीर्थंकर भगवाननि को अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।251 तीन लोक में तीरथ जे सुखदाय हैं। तिनि प्रति वंदौं भवा सहित सिर नाय के।। ऊँ ह्रीं तीन लोक में जे जे तीर्थ हैं तिनि को अयं निर्वपामीति स्वाहा।261 795
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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