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________________ सवा पंच-शत धनु उन्नत तन हरित-वरण शोभा असमान। वैडूर्यमणि-पर्वत मानों नील-कुलाचल-सम थिर जान।। तेजवंत परमाणु जगत में तिन करि रच्यो शरीर प्रमाण। सत वीरत्व गुणाकर जाको निरखत हरि हरषे उर आन।। धीरज अतुल वज्र-सम नीरज वीराग्रणी सम अति-बलवान। जिन छवि लखि मनु शशि-रवि लाजे कुसुमायुध लीनों सुपुमान।। बालसमय जिन बाल-चन्द्रमा शशि से अधिक धरे दुतिसार। जो गुरुदेव पढ़ाई विद्या शस्त्र-शास्त्र सब पढ़ी अपार।। ऋषभदेव ने पोदनपुर के नृप कीने बाहुबली कुमार। दई अयोध्या भरतेश्वर को आप बने प्रभुजी अनगार॥ राज-काज षट्खंड-महीपति सब दल लै चढ़ि आये आप। बाहुबली भी सन्मुख आये मंत्रिन तीन युद्ध दिये थाप। दृष्टि नीर अरु मल्ल-युद्ध में दोनों नृप कीजो बलथाप। वृथा हानि रुक जाय सैन्य की यातें लड़िये आपों आप। भरत बाहुबली भूपति भाई उतरे समर-भूमि में जाय। दृष्टि-नीर-रण थके चक्रपति मल्लयुद्ध तब करो अघाय॥ पगतल चलत चलत अचला तब कंपत अचल-शिखर ठहराय। निषध नील अचलाधर मानो भये चलाचल क्रोध-वशाय।। भुज-विक्रमबली बाहुबली ने लिये चक्रपति अधर उठाय। चक्र चलायो चक्रपति तब सो भी विफल भयो तिहि ठाय।। अतिप्रचंड भुजदंड सूंड-सम नृप-शार्दूल बाहुबलि-राय। सिंहासन मँगवाय जास पे अग्रज को दीनों पधराय।। राज रमा दामासुर धनमय जीवन दमक-दामिनी जान। भोग भुजंग-जंग-सम जग को जान त्याग कीनों तिहि थान।। अष्टापद पर जाय वीर नृप वीर व्रती धर लीनों ध्यान। अचल-अंग निरभंग संग-तज संवत्सर लों एक ही थान।। विषधर बंबी करी चरननतल ऊपर बेल चढ़ी अनिवार। युगजंघा कटि बाहु बेढ़िकर पहुँची वक्षस्थल पर सार।। 777
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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