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________________ तेरा प्रासाद महकता प्रभु! अति दिव्य दशांगी धूपों से। अतएव निकट नहिं आ पाते, कर्मों के कीट-पतंग अरे।। यह धूप सुरभि-निर्झरणी, मेरा पर्यावरण विशुद्ध हुआ। छक गया योग-निद्रा में प्रभु ! सर्वांग अमी है बरस रहा।। ॐ ही श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। निज लीन परम स्वाधीन बसो, प्रभु ! तुम सुरम्य शिव-नगरी में। प्रतिपल बरसात गगन, से हो, रसपान करो शिव नगरी में || ये सुरतरुओं के फल साक्षी, यह भव-संतति का अंतिम क्षण प्रभु! मेरे मंडप में आओ, है आज मुक्ति का उद्घाटन || ॐ ही श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। तेरे विकीर्ण गुण सारे प्रभु ! मुक्ता मोदक से सघन हुए। अतएव रसास्वादन करते, रे! घनीभूत अनुभूति लिये।। ! मुझे भी अब प्रतिक्षण, निज अंतर - वैभव की मस्ती । है आज अय की सार्थकता, तेरी अस्ति मेरी बस्ती । ॐ ही श्रीसिद्धचक्राधिपतये सिद्धपरमेष्ठिने अनघ्यपदप्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला चिन्मय हो चिद्रूप प्रभु! ज्ञाता मात्र चिदेश | चिदात्म शोध-प्रबन्ध के, सृष्टा तुम ही एक (रेखता) जगाया तुमने कितनी बार! हुआ नहिं चिर निद्रा का अंत। मदिर सम्मोहन ममता का, अरे बेचेत पड़ा मैं सन्त ।। घोर तम छाया चारों ओर, नहीं निज सत्ता की पहिचान। निखिल जड़ता दिखती सप्राण, चेतना अपने से अनजान || 738
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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