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________________ श्रीफल आदि बहुत फलसार, पूजौं जिन वांछित-दातार । परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो । दरशविशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थंकर पद दाय । परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ॥ गोडशकारणेभ्यो मोक्षपदप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा । ॐ ह्रीं दी जल फल आठों दरब चढ़ाय, द्यानतवरत करों मन लाय। परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ॥ दरशविशुद्धि भावना भाय, सोलह तीर्थंकर पद दाय । परम गुरु हो, जय जय नाथ परम गुरु हो ॥ ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्ध्यादि षोडशकारणेभ्यः अनर्घ्यप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। प्रत्येक भावना के अर्घ्य (सवैया तेईसा) दर्शन शुद्ध न होवत जो लग, जो लग जीव मिथ्याती कहावे। काल अनंत फिरे भव में, महादुःखनको कहुं पार न पावे।। दोष पचीस रहित गुण-अम्बुधि , सम्यग्दरशन शुद्ध ठरावे। 'ज्ञान' कहे नर सोहि बड़ो, मिथ्यात्व तजे जिन-मारग ध्यावे।। ॐ ह्रीं दर्शनविशुद्धि भावनायै नमः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।।। देव तथा गुरुराय तथा, तप संयम शील व्रतादिक-धारी। पापके हारक कामके छारक, शल्य-निवारक कर्म-निवारी।। धर्म के धीर कषायके भेदक, पंच प्रकार संसार के तारी। 'ज्ञान' कहे विनयो सुखकारक, भाव धरो मन राखो विचारी।। ॐ ह्रीं विनयसम्पन्नता भावनायै नमः अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।2। 697
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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