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________________ देव-शास्त्र-गुरु पूजन ( कविवर द्यानतराय) अडिल्ल छन्द प्रथम देव अरहंत सुश्रुत सिद्धान्त जू, गुरु निरग्रंथ महंत मुकतिपुर-पंथ जू । तीन रतन जगमाँहि सु ये भवि ध्याइये, तिनकी भक्ति प्रसाद परम पद पाइये ॥ पूजों पद अरहंत के, पूजों गुरुपद सार । पूजों देवी सरस्वती, नित प्रति अष्ट प्रकार ॥ ॐ ह्रीं श्रीदेव-शास्त्र-गुरुसमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् । (आह्वाननम्) ॐ ह्रीं श्रीदेव-शास्त्र-गुरुसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । (स्थापनम् ) ॐ ह्रीं श्रीदेव-शास्त्र-गुरुसमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (सन्निधिकरणम्) गीता छन्द सुरपति उरग नरनाथ तिन-करि, वन्दनीक सुपदप्रभा, अति शोभनीक सुवरण उज्ज्वल, देख छवि मोहित सभा । वर नीर क्षीर-समुद्र घट भरि, अग्र तसु बहु विधि नचूँ, अरहंत श्रुत सिद्धान्त गुरु निर्ग्रन्थ नित पूजा रचूँ ॥ मलिन वस्तु हर लेत सब जलस्वभाव मल छीन । जासों पूजों परमपद देव-शास्त्र-गुरु तीन | ॐ ह्रीं श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । 685
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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