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________________ देव शास्त्र गुरु समुच्चय पूजन (रचयिता - वृन्दावनदास) देवशास्त्र गुरु नमन करि, बीस तीर्थंकर ध्याय । सिद्ध शुद्ध राजत सदा, नमूं चित्त हुलसाय ॥ ॐ ह्रीं श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्यः श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्य: श्री अनन्तानन्त सिद्धपरमेष्ठिभ्यो अत्र अवतरत अवतरत संवौषट् । (इति आह्वाननम्) ॐ ह्रीं श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्यः श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्य: श्री अनन्तानन्त सिद्धपरमेष्ठिभ्यो अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठः ठः स्थापनम् । (स्थापनम्) ॐ ह्रीं श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्यः श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः श्री अनन्तानन्त सिद्धपरमेष्ठिभ्यो अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । (सन्निधिकरणम्) अनादिकाल से जग में स्वामिन, जल से शुचिता को माना। शुद्ध निजातम सम्यक् रत्नत्रय, निधि को नहीं पहचाना ॥ अब निर्मल रत्नत्रय जल ले, श्री देवशास्त्रगुरु को ध्याऊँ। विद्यमान श्री बीस तीर्थंकर, सिद्ध प्रभु के गुण गाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्यः श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः श्री अनन्तानन्त सिद्धपरमेष्ठिभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । भव आताप मिटावन की, निज में ही क्षमता समता है। अनजाने अब तक मैंने, पर में की झठी ममता है॥ चन्दन सम शीतलता पाने, श्री देव शास्त्र गुरु को ध्याऊँ। विद्यमान श्री बीस तीर्थंकर, सिद्ध प्रभु के गुण गाऊँ ॥ ॐ ह्रीं श्रीदेवशास्त्रगुरुभ्यः श्रीविद्यमानविंशतितीर्थंकरेभ्यः श्री अनन्तानन्त सिद्धपरमेष्ठिभ्यो भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा। 681
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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