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________________ सोई मानवता जाग उठी सुर नर पशु सबका हृदय खिला। उपदेशामृत के प्यासों को प्रभु निर्मल सम्यक् ज्ञान मिला। निज आत्म-तत्त्व के आश्रय से निज सिद्ध स्वपद मिल जाता है। तत्त्वों के सम्यक निर्णय से निज आत्म-बोध हो जाता है।। यह अनंतानुबंधी कषाय निज-पर विवेक से जाती है। बस भेदज्ञान के द्वारा ही रत्नत्रय-निधि मिल जाती है।। इस भरत क्षेत्र में विचरण कर जग जीवों का कल्याण किया। सद्दर्शन-ज्ञान-चारित्रमयी रत्नत्रय-पथ अभियान किया।। तुम तीस वर्ष तक कर विहार पावापुर उपवन में आये। फिर योग निरोध किया तुमने निर्वाण गीत सबने गाये।। चारों अघातिया नष्ट हुए परिपूर्ण शुद्धता प्राप्त हुई। जा पहँचे सिद्ध शिला पर तम दीपावली जग विख्यात हुई।। हे महावीर स्वामी! अब तो मेरा दुःख से उद्धार करो। भव-सागर में डूबा हूँ मैं हे प्रभु! इस भव का भार हरो।। हे देव! तुम्हारे दर्शन कर निज रूप आज पहिचाना है। कल्याण स्वयं से ही होगा यह वस्तु-तत्त्व भी जाना है।। निज-पर विवेक जागा उर में समकित की महिमा आई है। यह परम वीतरागी मुद्रा प्रभु देखी तो अति सुहाई है।। तुमने जो सम्यक् पथ सबको बतलाया उसका आचरलूँ। आत्मानुभूति के द्वारा मैं शाश्वत सिद्धत्व प्राप्त कर लूँ।। मैं इसी भावना से प्रेरित होकर चरणों में आया हूँ। श्रद्धायुत विनय-भाव से मैं यह भक्ति-सुमन प्रभु लाया हूँ।। तुमको है कोटि-कोटि सादर वन्दन स्वामी स्वीकार करो। हे मंगलमूर्ति तरण-तारण अब मेरा बेड़ा पार करो।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय जयमालापूर्णायँ निर्वपामीति स्वाहा। 675
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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