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________________ मणिमय - दीपक में ज्योति जले, सब अंधकार क्षण में नशि । दीपक से पूजा करते ही, सज्ज्ञानज्योति निज में भासे ।। हे वीरप्रभो! तुम आरति कर, हम नमन करे तव चरणों में ।। त्रिशलानंदन, शत-शत वंदन, शत-शत वंदन तव चरणों में। हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में ।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 6। दशगंध विमिश्रत धूप सुरभि, धूपायन में खेते क्षण ही। कटु कर्म दहन हो जाते हैं, मिलता समरस सुख तत्क्षण ही ।। हे वीरप्रभो! हम धूप जला, अर्चन करते तव चरणों में ।। त्रिशलानंदन, शत-शत वंदन, शत-शत वंदन तव चरणों में। हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। 7। एला केला अंगूरों के, गुच्छे अतिसरस मधुर लाये। परमानंदामृत चखने हित, फल से पूजन कर हर्षाये।। हे वीरप्रभो! महावीर प्रभो! हम नमन करें तव चरणों में ।। त्रिशलानंदन, शत-शत वंदन, शत-शत वंदन तव चरणों में। हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में।। ॐ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। 8 । जल चंदन अक्षत पुष्प चरू, वर दीप धूप फल लाये है। गुण अनंत की प्राप्ति हेतु, प्रभु अर्घ्य चढ़ाने आये हैं। हे वीरप्रभो! हम अर्घ्य चढ़ा कर, नमन करें तव चरणों में ।। त्रिशलानंदन, शत-शत वंदन, शत-शत वंदन तव चरणों में। हम भक्तिभाव से अंजलि कर, प्रभु शीश झुकाते चरणों में ।। ऊँ ह्रीं श्रीमहावीरजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद-प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। 665
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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