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________________ पुद्गल की अनन्त कार्माण वर्गणाओं से लिप्त हुआ भटक रहा। यह आत्मा अनन्त अक्षयगुण है, इस को न जान जग भटक रहा।। इसलिये प्रभु अक्षय-पद पाने अक्षत चढ़ाने आया हूँ। श्री शान्तिकुन्थु अर महावीर-चरण अक्षत चढ़ाने आया हूँ।।3।। ॐ ह्रीं श्रीपावागिरि-सिद्धक्षेत्रतः सिद्धपदप्राप्ताः स्वर्णभद्रादि-चतुर-मुनिश्वरेभ्यः एवं शान्ति-कुन्थु-अर महावीरजिनेन्द्रेभ्या अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। यह जीवन मेरा काम-व्यथा से पीडित होता आया है। मन्मथ की लालसायें लेकर जग गोते खाता आया है।। इस कामबाण विध्वंस हेतु भक्ति-पुष्प ले आया हूँ। श्री स्वर्णभद्रादि ऋषिवर को पुष्प चढ़ाने आया हूँ।।4।। ऊँ ह्रीं श्रीपावागिरि-सिद्धक्षेत्रतः सिद्धपदप्राप्ताः स्वर्णभद्रादि-चतुर-मुनिश्वरेभ्यः एवं शान्ति-कुन्थु-अर महावीरजिनेन्द्रेभ्यः कामबाण-विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। न जाने अब तक अनगिनते पदार्थ, भक्षण कर मैंने पेट भरा। पर क्षुधा न मिट पाई मेरी, अब तक संसार में अटक रहा।। मम क्षुधा-वेदनी नाश करो प्रभु नैवेद्य थालभर लाया हूँ। श्री स्वर्णभद्रादि मुनिवर को नैवेद्य चढ़ाने आया हूँ।।5।। ऊँ ह्रीं श्रीपावागिरि-सिद्धक्षेत्रतः सिद्धपदप्राप्ताः स्वर्णभद्रादि-चतुर-मुनिश्वरेभ्यः एवं शान्ति-कुन्थु-अर महावीरजिनेन्द्रेभ्या क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मैं समझ रहा अब तक नश्वर-दीपक से मोह नश जाएगा। पर झंझा के एक झोके से क्षणभर में दीपक बुझ जाएगा।। प्रभु आप के गुणमयी दीप से मोहान्धकार का नाश करूँ। श्री स्वर्णभद्रादि ऋषिवर के चरण कमल में शीश धरूँ।।6।। ऊँ ह्रीं श्रीपावागिरि-सिद्धक्षेत्रतः सिद्धपदप्राप्ताः स्वर्णभद्रादि-चतुर-मुनिश्वरेभ्यः एवं शान्ति-कुन्थु-अरमहावीरजिनेन्द्रेभ्या मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 647
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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