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________________ युग-युग के भव-भ्रमण से, देकर जग को त्राण । तीर्थंकर श्री पावने, पाया पद- निर्वाण | निर्लिप्त, आज नितांत है, चैतन्य कर्म - अभाव से। है ध्यान-ध्याता-ध्येय का, किंचित् न भेद स्वभाव से तव पादपद्मों की प्रभु, सेवा सतत पाते रहे। अक्षय असीमानंद का, अनुराग अपनाते रहे। ॐ ह्रीं श्रावणशुक्ल-सप्तम्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्री पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा। वंदना-गीत अनादिकाल से कर्मों का मैं सताया इसी से आपके दरबार आज आया हूँ। न अपनी भक्ति न गुणगान का भरोसा है। दयानिधान श्री भगवान् का भरोसा है। इक आसन लेकर आया हूँ कर्म कटाने के लिए। भेंट मैं कुछ भी नहीं लाया चढ़ाने के लिए | १ | जल न चंदन और अक्षत पुष्प भी लाया नहीं। है नहीं नैवेद्य-दीप अरु धूप - फल पाया नहीं हृदय के टूटे हुए उदगार केवल साथ हैं। और कोई भेंट के हित अर्घ्य सजवाया नहीं। हे यही फल फूल जो समझो चढ़ाने के लिए। भेंट मैं कुछ भी नहीं लाया चढ़ाने के लिये | २ | माँगना यद्यपि बुरा समझा किया मैं उम्रभर किन्तु अब जब माँगने पर बाँधकर आया कमर।। और फिर सौभाग्य से जब आप - सा दानी मिला। तो भला फिर माँगने में आज क्यों रक्खूँ कसर॥ प्रार्थना है आप ही जैसा बनाने के लिये । भेंट मैं कुछ भी नहीं लाया चढ़ाने के लिये | ३ | यदि नहीं यह दान देना आपको मंजूर है। और फिर कुछ माँगने से दास ये मजबूर है॥ 637
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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