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________________ प्रभु पार्श्वनाथ को देख क्रोधवश लकड़ी फरसे से काटी। तब सर्प-युगल उपदेश सुना, मर कर सुर-पद को पाये हैं।। जय-जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।।1।। यह सर्प-सर्पिणी धरणीपति, पद्मावति यक्षी हुए अहो। नाना मर शंबर ज्योतिष सुर, समकित बिन ऐसी गती अहो।। नहिं बह किया प्रभु दीक्षा ली, सुर-नर-पशु भी हर्षाये है।। जय-जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।।2।। प्रभु अश्वबाग में ध्यान लीन, कमठासुर शंबर आ पहुंचा। क्रोधित हो सात दिनों तक बहु, उपसर्ग किया पत्थर वर्षा।। प्रभु स्वात्म-ध्यान में अविचल थे, आसन कंपते सुर आये हैं।। जय-जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।।3।। धरणेन्द्र व पद्मावती ने फण पर, लेकर प्रभु की भक्ति की। रवि-केवलज्ञान उगा तत्क्षण सुर समवसरण की रचना की।। अहिच्छत्र नाम से तीर्थ बना, अगणित सुरगण हर्षाये हैं। जय-जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।। 4।। यह देख कमठचर शत्रु भी, सम्यक्त्वी बन प्रभु भक्त बने। मुनिनाथ स्वयंभू आदिक दश, गणधर थे ऋद्धीवंत घने।। सोलह हजार मुनिराज प्रभू के, चरणों में शीश नाये हैं।। जय-जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।।5।। गणिनी सुलोचना प्रमुख आर्यिका, छत्तिस सहस धर्मरत थीं। श्रावक इक लाख श्राविकायें, त्रय लाख वहाँ जिन-भाक्तिक थीं। प्रभु सर्प-चिन्ह तनु हरित-वर्ण, लखकर रवि-शशि शर्माये हैं।। जय-जय प्रभु के श्री चरणों में, हम शीश झुकाने आये हैं।। 6।। नव हाथ तुंग सौ वर्ष आयु, प्रभु उग्र-वंश के भास्कर हो। उपसर्ग-जयी संकट-मोचन, भक्तों के हित करुणाकर हो।। प्रभु महा-सहिष्णु क्षमासिंधु, हम भक्ती करने आये हैं।। 620
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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