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________________ इस भव में भी संवर सुर हो महा विघ्न करने आया।5। किया अग्निमय घोर उपद्रव भीषण झंझावात चला। जल प्लावित हो गया धरा पर ध्यान आपका नहीं हिला।6। यक्षी-पद्मावती यक्ष-धरणेन्द्र विघ्न हरने आये पूर्व जन्म के उपकारों से हो कृतज्ञ तत्क्षण आये।7। प्रभु-उपसर्ग निवारण के हित शुभ परिणाम हृदय छाये। फण-मण्डप अरु सिंहासन रच जय जय जय प्रभु गुण गाये।8। देव आपने साम्य-भाव धर निज-स्वरूप को प्रगटाय। उपसर्गों पर जय पाकर प्रभु निज केवल-स्वपद पाया।9। कमठ जीव की माया विनशी वह भी चरणों में आया। समवशरण रचकर देवां ने प्रभु का गौरव प्रगटाया।10। जगत-जनों को ओंकार-ध्वनिमय प्रभु ने उपदेश दिया। शुद्ध-बुद्ध भगवान् आत्मा सबको है सन्देश दिया।11। दश गणधर थे जिनमें पहले मुख्य स्वयंभु गणधर थे। मुख्य आर्यिका सुलोचना थी श्रोता महासेन वर थे।12। जीव, अजीव, आश्रव, संवर, बन्ध निर्जरा मोक्ष महान। ज्यों का त्यों श्रद्धान तत्त्व का सम्यक् दर्शन श्रेष्ठ प्रधान।13। जीव तत्त्व तो उपादेय है, अरु अजीव तो है सब ज्ञेय। आस्रव, बन्ध हेय है साधन, संवर निर्जरा मोक्ष उपेय14। सात तत्त्व ही पाप पुण्यमिल नव पदार्थ हो जाते हैं। तत्त्व-ज्ञान बिन जग के प्राणी भव-भव में दुख पाते हैं।15। वस्तु-तत्त्व को जान स्वयं के आश्रय में जो आते हैं। आत्म-चितवन करके वे ही श्रेष्ठ मोक्ष-पद पाते हैं।16। हे प्रभु! यह उपदेश आपका मैं निज अन्तर में लाऊँ। आत्म-बोध की महाशक्ति से मैं निर्वाण स्वपद पाऊँ। अष्ट कर्म को नष्ट करूँ मैं तुम समान प्रभु बन जाऊँ। सिद्ध-शिला पर सदा विराजूं निज-स्वभाव में मुस्काऊँ।18। 612
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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