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________________ प्रभु समवशरण महिमा अपार, उपदेश सुने सब भेद टार विभु स्याद्वाद-वाणी महान, एकान्त नशा सबका जहान॥7॥ तुम भेद-भाव सबका मिटाय, रत्नत्रय से शिवपथ दिखाया। चौतीसों अतिशय और चार, गुण सौहैं शुभ वसु प्रातिहार॥8॥ हैं गुण अनन्त महिमा जहान, जग में अनुपम है आप ज्ञान। जो शरण बिहारी गहे आय, फिर आधि-व्याधि नहि रहे ताय || 9 || पंगू बहरा या मूक कोय, तुम भक्त विसें नहिं रोग होय। निर्धन निपुण्य प्रभु शरण आय, मनवांछित फल को लेत पाय।।10। तुम नाम-मन्त्र की जपत जाप, जग भूत प्रेत भग जात आप। गुण-चिन्तन में जो लीन होय, भव-भव में नहिं वह दीन होय॥11॥ तुम वीतराग मैं राग-लीन, प्रभु गुण-निधान मैं रागधीन । केवल ज्ञानी हो शुद्ध-बुद्ध, मैं ज्ञान - रहित विषयनि प्रबुद्ध ।।12। टंकोत्कीर्ण विभु शुद्ध भाव, मुझमें पर-परणति का लगाव। प्रभु ज्ञानानन्द विलीन आप, नित निज अनुभव की जपत जाप ॥13॥ प्रभु पूजत दुःख-दारिद्र जाय, भवि पूज्य बनें जग यश लहाय । पूजा प्रतिदिन पार पुनीत, मनवांछित फल हो जगत जीत ॥14॥ वैभव नहिं भव-सुख चाह मोय, शिवसुन्दरि से मम नेह होय । अरजी सन्मति करुणा महान तुमसे गुण हो मुझमें महान | 15 | (दोहा) नगर बिहारी क्षेत्र में, हे पारस महाराज। पूजन भक्ती भाव से, सिद्ध होय सब काज। ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय नमः जयमाला-पूर्णायं निर्वपामीति स्वाहा। स्वयं आत्म-पुरुषार्थ से, हुये स्वं जगदीश । विश्वशान्ति सुख-सम्पदा सन्मति चरणों शीश ॥ इत्याशीर्वादः पुष्पांजलि क्षिपामि ॥ 589
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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