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________________ अक्षत हो आप अमल प्रभुवर, शाश्वत सुख उपजाया है। अविकार आत्मरत में रमकर निज अनुभव को प्रगटाया है ।। निज अक्षय-पद के हेतु नाथ, अक्षत मैं चरण चढ़ाता हूँ । हे क्षेत्र बिहारी पार्श्व प्रभो, सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ || 3 | ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय नमः अक्षयपद-प्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। स्याद्वादमयी सत् पुष्पों से, निज - गुण फुलवारी महकायी। आत्मानुभूति की गन्ध विभो पर - गंध नहीं तुमको भायी।। विषयों की गंध मिटाने को, प्रभु पुष्प सुचरण चढ़ाता हूँ।। हे क्षेत्र बिहारी पार्श्व प्रभो, सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ।। 4 । ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय नमः कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। तुम क्षुधा रोग से परे विभो, खाने-पीने की चाह नहीं। निज अनुभव हित आस्वादन कर, पर- परणति की परवाह नहीं । । मम क्षुधा विलय हो हे स्वामिन्, नैवेद्य सु चरण चढ़ाता हूँ।। हे क्षेत्र बिहारी पार्श्व प्रभो, सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ।। 5 । ऊँ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथजिनेन्द्राय नमः क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। सकल द्रव्य के गुण अनन्त, पर्याय अनन्ते राजत हैं। दर्पणवत् केवलज्ञान विषै, जैसे के तैसे भासत हैं।। निज केवलज्ञान जगाने को, दीपक प्रभु चरण चढ़ाता हूँ।। हे क्षेत्र बिहारी पार्श्व प्रभो, सुख-सम्पति हो सिर नाता हूँ ।। 6 ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नमः मोहान्धकार- विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। 586
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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