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________________ दो इन्द्रिय, त्रय इन्द्रिय, चतुइन्द्रिय, पर्याप्त-अपर्याप्तक।। संज्ञी और असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्तक। यह ही चौदह जीव समास जीव के जग में परिचायक।। गति, इन्द्रिय, कषाय अरु लेश्या, वेद, योग, संयम, सम्यक्त्व। काय, आहार, ज्ञान, दर्शन अरु है संज्ञीत्व और भव्यत्व।। यह चौदह मार्गणा जीव की होती है इनसे पहचान। पंचानवे भेद हैं इनके जीव सदा हैं सिद्ध समान।। गति है चार, पाँच है इन्द्रिय, छह लेश्या, पच्चीस कषाय। वेद तीन, सम्यक्त्व-भेद छह, पन्द्रह योग और षट् काय।। दो आहार, चार दर्शन है, संयम सात अष्ट है ज्ञान। दो संज्ञीत्व और है दो भव्यत्व मार्गणा भेद प्रधान।। गुणस्थान मार्गणा व जीव-समास सभी व्यवहार-कथन। निश्चय से यह नहीं जीव के इन सबसे अतीत चेतन।। मूल प्रकृतियाँ कर्म आट ज्ञानावरणादिक होती है। उत्तम प्रकृति एक सौ अड़तालीस कर्म की होती है।। गुणस्थान मिथ्यात्व प्रथम में एक शतक सत्रह का बन्ध। दूजे सासादन में होता एक शतक व एक का बन्ध।। मिश्र तीसरे गुणस्थान में प्रकृति चौदहत्तर का हो बन्ध। चौथे अवरति-गुणस्थान में प्रकृति सतत्तर का हो बन्ध।। पंचम देश-विरत में होता सड़सठ कर्मप्रकृति का बन्ध। गुण स्थान षष्ठम प्रमत्त में त्रेसठ कर्मप्रकृति का गन्ध।। सप्तम अप्रमत्त में होता उनसठ कर्मप्रकृति का बन्ध। अष्ट अपूर्वकरण में हो अट्ठावन कर्मप्रकृति का बन्ध।। नौ अनिवृत्तिकरण में होता है बाईस प्रकृति का बन्ध। दसवे सूक्ष्मसाम्पराय में सतरह कर्म प्रकृति का बन्ध।। ग्यारहवे उपशान्तमोह में एक प्रकृति साता का बन्ध। क्षीणमोह बारहवें में है एक प्रकृति साता का बन्ध।। है सयोग केवली तेरहवाँ एक प्रकृति साता का बन्ध। है अयोग केवली चतुर्दश किसी प्रकृति का कोई न बन्ध।। 521
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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