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________________ सोनागिरि सोना बरसाता, आनन्द ही आनन्द आता है। सुन्दर मन्दिर पर्वत ऊपर, भक्ति कर मन हर्षाता है।। श्री नंग-अनंग कुमार मुनि, इस पर्वत से ही मुक्त हुये। मुनि संग में साढ़े पाँच कोटि, वे भी इस भूमि से मुक्त हुये।। इक-इक मन्दिर का दर्शन, कर्मों को हल्का करता है। चौबीसी के दर्शन करक, मन पुलकित-पुलकित होता है।। भटका हूँ सच्चे मारग से, मुझको सदराह दिखाओ तुम। अज्ञान-अंधेरा छाया है, ज्ञान का दीप जलाओ तुम।। क्रोधाग्नि कषायों के कारण, मैं बनता और बिखरता हूँ। आशीष मिले प्रभु तेरा तो, कुंदन सा और निखरता हूँ।। मनहर प्रभु तेरी मूरतियाँ, भक्तों के मन को भाती है। जो भी तेरे दर्शन करता, प्रतिमा लख प्रतिभा जगती है।। मैं नर्क तिर्यंच गति घूमा, स्वर्गों का सुख भी पाया है। पर तेरे दर्शन जैसा सुख, प्रभु और कहीं ना आया है।। पर्वत भी अतिशय बरसाता, जो भी दर्शन को आता है। संकट हरता झोली भरता, सुख-शांति जग में पाता है।। चंदा प्रभु का शुभ समोवसरण, कई बार यहाँ पर आया था। इस भूमि को पावन करके, दिव्यामृत को बरसाया था।। तपसी के तप ने भूमि के, कण-कण को पावन कर दीना। इस भूमि की पूजा करते, रज मस्तक शीश चढ़ा लीना।। यह मोह महातम अंधियारी, मेरे जीवन में छाई है। हो पूर्णमासी के चंद्र आप, मम मन की कली हर्षाई है।। ___ मेरी पूजा से हो प्रसन्न, प्रभु मेरी झोली भर देना। स्वस्ति की है अंतिम इच्छा, अपने सम मुझको कर लेना।। 493
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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