SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 486
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जग के झंझट से मन ऊबा, तप की ली प्रभुजी ने ठहराया। पौष वदी ग्यारस को इन्द्र ने, तप कल्याण कियो हरषाय।। सर्वर्तुक वन में जाय विराजे केशलोंच जिन कियो हरषाय। देहरे के श्री चन्द्रप्रभु को अध्य चढ़ाऊं नित्य बनाय।। ॐ ह्रीं पौषकृष्णा-एकादश्यां तपोमंगल-मंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।। फाल्गुन वदी सप्तमी के दिन, चार घातिया घात महान। समवशरण रचना हरि कीनी, ता दिन पायो केवल ज्ञान।। साढ़े आठ योजन परमित था, समवशरण श्री जिन भगवान। ऐसे श्री जिन चन्द्रप्रभु को, अर्घ्य चढ़ाय करूं नित ध्यान।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनकृष्णा-सप्तम्यां केवलज्ञान-मंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।4। शुक्ला फाल्गुन सप्तमि के दिन, ललितकूट शुभ उत्तम थान। श्री जिन चन्द्रप्रभ जगनामी. पायो आतम शिव कल्याण।। वसु कर्म जिन चन्द्र ने जीते, पहुंचे स्वाम मोक्ष मंझार। निर्वाण महोत्सव कियो इन्द्र ने, देव करें सब जय जयकार।। ऊँ ह्रीं फाल्गुनशुक्ला-सप्तम्यां मोक्षमंगल-मंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।5। श्रावण सुदी दशमी को प्रभु जी, प्रकट भये देहरे में आन। संवत तेरह दो सहस्र ऊपर, शुभ गुरुवार को ता दिन जान।। जय-जयकार हुई देहरे में, प्रकट हुए जब श्री भगवान। चरणों में आ अध्य चढ़ाऊँ, प्रभु के दर्शन सुख की खान।। ऊँ ह्रीं श्रावणशुक्ला-दशम्यां देहरास्थाने प्रकटरूपाय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा।6। 486
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy