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________________ वर केवलभानु उद्योत कियो, तिहुँ लोक तणों भ्रम मेट दियो। कलि फाल्गुन सप्तमी इन्द्र जजे, हम पूजहिं सर्व कलंक भजे ॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णसप्तम्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा । सित फाल्गुन सप्तमि मुक्त गये, गुणवन्त अनन्त अबोध भये । हरि आय जजें तित मोद धरे, हम पूजत ही सब पाप हरे ॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनशुक्लसप्तम्यां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अयं निर्वपामीति स्वाहा । जयमाला दोहा हे मृगांक-अंकितचरण, तुम गुण अगम अपार । गणधर से नहिं पार लहिं, तौ को वरनत सार ॥ पै तुम भगति हिये मम, प्रेरे अति उमगाय । ताते गाऊँ सुगुण तुम, तुम ही होउ सहाय ॥ पद्धरिछन्द जय चन्द्र जिनेन्द्र दया-निधान, भवकानन हानन दैवप्रमान । जय गरभ जनम मंगल दिनन्द, भवि जीव विकासन शर्म कन्द ॥१॥ दश लक्ष पूर्व की आयु पाय, मन वांछित सुख भोगे जिनाय । लखि कारण द्वै जग नैं उदास, चित्यो अनुप्रेक्षा सुख निवास ॥२॥ तित लौकांतिक बोध्यो नियोग, हरि शिविका सजि धरियो अभोग । तापै तुम चढि जिनचन्दराय, ता छिन की शोभा को कहाय ॥३॥ जिन अंग सेत सित चरम ढार, सित छत्र शीस गल-गुलक हार । सित रतनजड़ित भूषण विचित्र, सित चन्द्र-चरण चरचैं पवित्र ॥४॥ सित तन-द्युति नाकाधीश आप, सित शिविका कांधे धरि सुचाप । सित सुजस सुरेश नरेश सर्व, सित चित में चिन्तत जात पर्व ॥५॥ ___ सित चन्द-नगर निकसि नाथ, सित वन में पहुँचे सकल साथ। सित सिला शिरोमणि स्वच्छ छांह, सित तप तित धारौ तुम जिनांह ॥६॥ 47
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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