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________________ श्री अजितनाथजिन पूजा (दोहा) श्री अजितेश्वर चरन को, बार बार सिरनाय । तिनके चरन सरोज की, पूजा करूँ बनाय (छप्पय) तपकुंजर असवार धार दृढ़ विरागबख्तर । समवशरण भू माहिं, निरख मोहादि अरनि पर ।। ध्यानधनुष कर धार, ज्ञानशर चाप चढ़ायो। अरि समूह के बीच, मोह अरि मार गिरायो । रज अन्तराय हनि छिनक में, जगदीश्वर पद प्रभु लियो । यह जानि जिनेश्वर जगत में, जिनपद पूजन मन भयो।। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिन! अत्र अवतर अवतर संवौषट्। (इति आह्वाननम्) ॐ ह्रीं श्रीअजितनाथजिन! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। (स्थापनम् ) ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिन ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। (सन्निधिकरणम्) उज्जवल जल प्रासुक सार निर्मल मिष्ट महा जिनचरन अग्र त्रय धार धारत सुक्ख लहा।। अजितेश्वर दीन दयाल स्वपर प्रकाश करो । तुम सरनागत प्रतिपाल मम उर आन भरो।। ऊँ ह्रीं श्रीअजितनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु-विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। गोशीर कपूर अनूप केसर संग घसों। पद पूज सुरासुर भूप अष्टम अवनि गमो ॥ अजितेश्वर दीन दयाल स्वपर प्रकाश करो। तुम सरनागत प्रतिपाल मम उर आन भरो।। ॐ ह्रीं श्री अजितनाथजिनेन्द्राय संसारताप-विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। 465
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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