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________________ समकित के पुष्प सुरम्य दे दो हे स्वामी। यह काम भाव मिट जाय हे अन्तर्यामी।। जय ऋषभदेव जिनराज शिवसुख के दाता। तुम सम हो जाता जीव स्वयं को जो ध्याता।। ऊँ ह्रीं श्रीऋषभनाथजिनेन्द्राय कामबाण-विनाशनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। समकित चरु करो प्रदान मेरी भूख मिटे। भव-भव की तृष्णा-ज्वाल उर से दूर हटे।। जय ऋषभदेव जिनराज शिवसुख के दाता। तुम सम हो जाता जीव स्वयं को जो ध्याता।। ऊँ ह्रीं श्रीऋषभनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग-विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। समकित दीपक की ज्योति मिथ्यातम भागे। देखू निज सहज स्वरूप निज परणति जागे।। जय ऋषभदेव जिनराज शिवसुख के दाता। तुम सम हो जाता जीव स्वयं को जो ध्याता।। ऊँ ह्रीं श्रीऋषभनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार-विनाशनाय दीपं निर्वामीति स्वाहा। समकित की धूप अनूप, कर्म विनाश करे। निज ध्यान-अग्नि के बीच आठों कर्म जरें।। जय ऋषभदेव जिनराज शिवसुख के दाता। तुम सम हो जाता जीव स्वयं को जो ध्याता।। ॐ ह्रीं श्रीआदिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म-दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। समकित फल मोक्ष महान् पाऊँ आदि प्रभु। हो जाऊँ सिद्ध समान सुखमय ऋषभ प्रभु।। जय ऋषभदेव जिनराज शिवसख के दाता। तुम सम हो जाता जीव स्वयं को जो ध्याता।। ॐ ह्रीं श्रीऋषभनाथजिनेन्द्राय मोक्षमहाफल-प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। 461
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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