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________________ चैत्र अमावस को जगदीश्वर, छांडि दियो गुण चौदम ठाणा, एकसमय मधि सिद्ध पती जिन, देव भये सुरनायक जाना। ले निज साथ प्रिया पृतना करि, मोद समेदपहार पिछाना। कर निरवान तनी विधि ठाना, यहां हम पूजत पाद महाना।। ओं ह्रीं चैत्रकृष्णामावस्यायां मोक्षकल्याणकप्राप्ताय श्री अरहनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला काव्य छन्द जय जय अरह जिनेन्द्र देवाधि देववर। जय जय मिथ्या-निशाहरण को महत दिवाकर। जय अकलंक स्वरूप दोष-मोचन अति सोहै। जय तियलोक मँझार, दीनपति तोसम को है।। पद्धरि छन्द जय मित्रा-देवी के सुनन्द, मुख शोभित तुम अकलंक चन्द। जय दुरित-मिमिर-नाशक-पतंग, माया-वेली-भंजन-मतंग।1।। जय चक्र किंकणी छत्र दण्ड, चूड़ामणि चरम अरु असि प्रचण्ड। ये सात अचेतन मणि महान, प्रभु छांडि दीन तृणके समान।।2।। रति रानी सेनानी मतंग, प्रोहित शिल्पी गृहपति तुरंग। सातों चेतन मणि मन विचारि, लखि अथिर हृदय संवेग धारि।।3।। जो नाना पुस्तक देत दान, सो तजी काल-निधि सहित ज्ञान। असि मसि साधन जो महत काल, तासों निस्पृही भये कृपाल।।4।। हाटक-भाजन मणि-जटित सार, नैसर्प देत नाना प्रकार। तसु त्यागत छिन में है प्रबुद्ध, निज अंजलि भोजन करत शुद्ध।।5।। चैथी पाण्डुक निधि नाम होय, अरपै सब रसमय धान्य सोय। तातें संवर करि जगत-पाल, जग-जीवन को कीन्हें निहाल॥6॥ जो अर्पत पाटम्बर विशाल। तसु नाम पद्मनिधि कहत हाल। तिहिं त्याग कीन्ह दिगवसन नाथ, जय कीजे स्वामी अब सनाथ।।7।। निधि मानव नाना शस्त्र देत, ता ऊपर रंच न करत हेत। 361
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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