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________________ महकत दिगावली जा खेये, ऐसी धूप भी सो दाहि धूप में प्रभु आगे लेत सुवास अली सो।। धर्मनाथजिन धर्मधुरन्धर, तिन पद जलरुह केरी, जजन आत्मअनुभवके कारण, कीजत आज भलेरी | ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। चिरभट आम्रपनस दाडिम ले, दाख कपित्थ बिजौरे । भरि-भरि धार सदा फल नीके, करि करि भव सुधरे ॥ धर्मनाथजिन धर्मधुरन्धर, तिन पद जलरुह केरी, जजन आत्मअनुभवके कारण, कीजत आज भलेरी। ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा। धरि धरि चाव भाव दोऊ शुभ, अन्तर बाहर केरे । करि करि अघ्य बनाय गाय नित, कहें सुगुण बहुतेरे || धर्मनाथजिन धर्मधुरन्धर, तिन पद जलरुह केरी, जजन आत्मअनुभवके कारण, कीजत आज भलेरी। ओं ह्रीं श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अनध्य पद प्राप्तये अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। पंचकल्याणक - अडिल्ल छन्द मात सुव्रता उर में जिनवर आनियो, तेरसि सुदि वैशाख तनी शुभ जानियो । गर्भ महोत्सव इन्द्र भली विधि सों कियो, मैं पूजत हों अघ्य लिये हुलसो हियो। ओं ह्रीं वैशखशुक्लत्रयोदश्यां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। माघ महीना तेरसि उजियारी कही, जगत उधारण दीन बन्धु प्रगटे मही । भविक चकोरा देखि देखि आनंद हिये, लिये अध्य मैं पूजत शिव आशा किये। ओं ह्रीं माघशुक्लत्रयोदश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री धर्मनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 343
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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