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________________ पंचकल्याणक नृप सौध ऊपर हरिष चित अति, गाय गुण अमलान, षट् मास आगे रतन बरषा, करत देव महान। कार्तिक वदी एकम कहावत, गर्भ आये नाथ, हम चरण पूजत अरघ ले-मन, वचन नाऊं माथ। ओं ह्रीं कार्तिककृष्णप्रतिपदायां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। शुभ जेठ महिना वदी द्वादशि, के दिना जिनराज, जन्मे भयो सुख जगत के चढ़ि , नागसहित समाज। शचिनाथ आय सुभाव पूजा, जनम दिन की कीन, मैं जजत युगपद रघ सों प्रभु, करहु संकट छीन। ओं ह्रीं ज्येष्ठकृष्णद्वादश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। वदि जेठ द्वादशि जाय वन में, केश लुंचत धीर, तजि बाह्याभ्यन्तर सकल परिग्रह, ध्यान धरत गंभीर। मैं दास तुम पद यहां पूजत, शुद्ध अरघ बनाय, तहँ जजत इन्द्रादिक सकल गुण, गाय चित हरषाय। ओं ह्रीं ज्येष्ठकृष्णद्वादश्यां तपकल्याणकप्राप्ताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। अम्मावसी वदि चैत की लहि, ज्ञान केवल सार, करि नाम सार्थक प्रभु अनन्त, चतुष्ट लहत अपार। करुणा-निधान सुख के, भव उदधि के पोत, मैं जजत तम पद कमल निरमल, बढ़त आनन्द सोत। ओं ह्रीं चैत्रकृष्णामावस्यायां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री अनन्तनाथजिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 338
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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