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________________ श्री विमलनाथ जिन-पूजा (रचयिता - कविवर मनरंगलाल) स्थापना- गीता छन्द कम्पिला नगरी सुकृत वरमा, पिता श्यामा मात के। सुत विमल वंश इक्ष्वाकु अंक, वराह शुभ जगतान के।। साठ धनु उन्नत सुकंचन, वर्ण देह विराजही। सहस्रारतें चय साठ लख, वर्षे सुआऊषा लहीं।। प्रभु विमलमतिकर विमलमतिमो, विमलनाथ सुहावने। गुणकन्द छन्द अमन्द आनन, जगतफन्द मिटावने।। अब लगी मो मन की सुआशा, पादपूजन की भली। तनि करो किरपा धरो पग इह, आय जो पाऊँ रली।। ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् (इति आह्वाननम्) ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठौ तिष्ठौ ठः ठः। (स्थापनम्) ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितौ भव भव वषट् (सन्निधिकरणम्) अष्टक मैं ल्याय सुभग कबन्ध, मन्द मन्द घिसायके। मिलवाय तृषा निकन्दकारन, झारिका भरवायके।। प्रभु विमल पाप-पहार-तोड़न, वज्रदण्ड सुहावने। पद जजों सिद्धिसमृद्धिदायक, सिद्धिनायक तो तने।। ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलम् निर्वपामीति स्वाहा। घसवाय चन्दन अगरजा, कर्पूर वासव वल्लभा। धरि रतनजडित सुवर्णभाजन, मांहिं जाकी अतिप्रभा।। प्रभु विमल पाप-पहार-तोड़न, वज्रदण्ड सुहावने। पद जजों सिद्धिसमृद्धिदायक, सिद्धिनायक तो तने।। ओं ह्रीं श्री विमलनाथजिनेन्द्राय भवातापविनाशनाय चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा। 329
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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