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________________ जयमाल - मनहरण भूप सुप्रतिष्ठित के वंश सर मांहि जात, देखे चित्त ना आघात आनन्द बढ़े रहें। आवे मकरन्द बड़ी दशो दिशा फैल रही, आय भवि भौंरा, नित्य ऊपर मढ़े रहें। तीन लोक इन्दिरा सुवास पाय हरषात, कर्णिका सुनख जोति तासों उमड़े रहे।। तेरे युग चरण सरोज देखि देखिके, कमल विचारे एक पायन खड़े रहें। चौपाई जय आनन्दघन सुकृत निवासा। पुजवत सब जग जन की आसा। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। जो पदनख पर धुति उमड़ाहीं। तापर कोटि काम लजि जाहीं।। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। जय दारिद चूरन भगवाना। पूरन छवि-सागर गुण नाना।। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। भरम-हरण जय सरम निकेता। कायोत्सर्ग धारि शिव लेता।। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। जय पण ऊन शतक गण ईशा। सुन सुन गिरा नवावत शीशा।। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। जय बिन भूषण भूषित देहा। बिना वसन आनन्द के गेहा।। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। तुम प्रताप विष अम्मृत सरिसा। रंक होय निहचै करि हरिसा।। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। जल थल हो विषम सम नीके। पन्नग होय हार छवि हीके।। जय सपार्श्व देवन के देवा। हतभकलपन करत पद सेवा। प्रभु प्रताप पावक सियराई। दुअन महा पीतम हो जाई।। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। वन शुभनगर अचल गृहरूपा। मृगपति मृगसो होय अनूपा।। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। तुम प्रताप हो आल पताला। तुम प्रताप हो आल श्रृंगाला।। जय सुपार्श्व देवन के देवा। हुतभुकलपन करत पद सेवा। शस्त्र होय अम्बुज दल माना। वज्रपात सिर छत्र समाना।। 300
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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