SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तुम पद-पद्म सद्म-शिवदायक, जजत मुदित-मन उदित सुभाय।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतान्निर्वपामीति स्वाहा।3। कमल केतकी बेल चमेली, करना अरु गुलाब महकाय। सो ले समर-शूल छय-कारन, जजौं रन अति-प्रीति लगाय।। हरि-हर-वंदित पाप-निकंदित, सुमतिनाथ त्रिभुवन के राय। तुम पद-पद्म सद्म-शिवदायक, जजत मुदित-मन उदित सुभाय।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय काम-बाण विध्वंसाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।4। नव्य गव्य पकवान बनाऊँ, सुरस देखि दृग-मन ललचाय। सौ लै छुधा-रोग छय-कारण, धरौं चरण-ढिंग मन हरषाय।। हरि-हर-वंदित पाप-निकंदित, सुमतिनाथ त्रिभुवन के राय। तुम पद-पद्म सद्म-शिवदायक, जजत मुदित-मन उदित सुभाय।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।5। रतन-जड़ित अथवा घृत-पूरित, वा कपूरमय-जोति जगाय। दीप धरौं तुम चरनन आगे, जातें केवलज्ञान लहाय।। हरि-हर-वंदित पाप-निकंदित, सुमतिनाथ त्रिभुवन के राय। तुम पद-पद्म सद्म-शिवदायक, जजत मुदित-मन उदित सुभाय।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विध्वंसनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।6। अगर तगर कृष्णागरु चंदन, चूरि अगिनि में देत जराय। अष्ट-करम ये दुष्ट जरतु हैं, धूम धूम यह तासु उड़ाय॥ हरि-हर-वंदित पाप-निकंदित, सुमतिनाथ त्रिभुवन के राय। तुम पद-पद्म सद्म-शिवदायक, जजत मुदित-मन उदित सुभाय।। ॐ ह्रीं श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।7। 30
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy