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________________ पंचकल्याणक - छन्द शिखरणी वदी षष्ठी जानो, सुभतर कहो माघ महिना। वसे माता कुक्ष्यां रतनवरषे, कहा कहिना।। जजों में ले अध्य, पदमप्रभ के द्वन्द्व चरणा। बसो मेरे ही में, सतत अबके लेहुँ शरणा। ओं ह्रीं माघकृष्णषष्ठ्यां गर्भकल्याणकप्राप्ताय श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। मति श्रुती अवधी, लसत शुभ ज्ञानं अलख को। भली त्रयोदश्यां, कार्तिक महीना प्राकपख को।। प्रभू जन्मे भू पै, दिनपति मनोकोटि उदितम्। लखे जाके नित्य, भविकजलजा होत मुदितम्।। ओं ह्रीं कार्तिककृष्णत्रयोदश्यां जन्मकल्याणकप्राप्ताय श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा । कही त्रयोदश्यां, कार्तिक महीना पक्ष पहिला। तजी मायासारी, वनमधि वसे छाँडि महिला।। करें सो देवाधिप, सकल सानन्द मनसों। जजों में ले अर्घ्य, मनवाचन वा शुद्ध तनसों।। ओं ह्रीं कार्तिककृष्णत्रयोदश्यां तप कल्याणकप्राप्ताय श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा । कही पूनो आछी, मधुमहिनमा केरि जु दिना। हने घाती चारों, महत शुभ ले ज्ञान सुजिना।। महामिथ्या रूपी, तमहरण को भानु प्रगटा। नसें जाके देखे दअन कलुषाकी अतिघटा। ओं ह्रीं चैत्रशुक्लपौणमास्यां ज्ञानकल्याणकप्राप्ताय श्री पद्मप्रभ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा । 294
SR No.009243
Book TitleChovis Bhagwan Ki Pujaye Evam Anya Pujaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages798
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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